Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
प्राकाम्य शक्ति -- जिसके द्वारा भूमि पर चलने के समान जल में गमन हो सके और भूमि पर भी सरोवर में उन्मज्जन- निमज्जन के समान कर सके, ऐसी शक्ति | ईशत्व शक्ति - चक्रवर्ती और इन्द्र की ऋद्धि का विस्तार करने की योग्यता । वशीकरण शक्ति -- जिससे भयंकर और क्रूर जन्तु भी वश में हो जाय । अप्रतिघाति शक्ति -- जिससे पर्वत के भीतर भी उनके लिए गमन करने योग्य मार्ग बन जाय ।
अप्रतिहत अन्तर्धान शक्ति -- वायु के समान अदृश्य होने की शक्ति ।
कामरूपत्व शक्ति -- जिसके द्वारा समकाल में ही अनेक प्रकार के रूप बना कर सारे लोक को भर दे, ऐसी शक्ति ।
बीज बुद्धि -- एक अर्थ रूप बीज से अनेक अर्थ को जानने की बुद्धि ।
कोष्ठ बुद्धि-- कोठी में भरे हुए धान्य के समान, पहले सुने हुए सभी अर्थ यथास्थित रहे, विस्मृत नहीं हो ।
पदानुसारिणीबुद्धि + - आदि, अन्त या मध्य के एक पद के सुनने मात्र से सारे ग्रंथ का बोध हो जाय, ऐसी शक्ति ।
मनोबली -- वीर्यान्तराय के विशिष्ट क्षयोपशम से दृढ़ मनोबल के स्वामी । एक वस्तु का उद्धार कर के अन्तर्मुहूर्त में श्रुत-समुद्र का अवगाहन करने वाले ।
वचनबली -- मुहूर्त भर में मूलाक्षर का उच्चारण कर के सभी शास्त्रों को बोलने की शक्ति वाले |
कायबली - - बहुत लम्बे समय तक कायोत्सर्ग प्रतिमा में खेद रहित हो कर स्थिर रहने वाले ।
अमृतक्षीर मध्वाज्याश्रवी ( क्षीरमधुसर्पिरासवी) जिनकी वाणी दुखियों के मन में क्षीर, अमृत, मधु और घृत जैसी शांति और सुख देने वाली होती है ।
अक्षीणमहानसी -- जिनके पात्र में पड़ा हुआ अल्प भोजन, बहुजनों को दान करने पर भी समाप्त नहीं होता ।
अक्षीणमहालय - - तीर्थंकर परिषदा के समान अल्प स्थान में भी बहुत से जीवों का
+ इसके तीन भेद होते हैं-१ अनुश्रोत पदानुसारिणी = प्रथम पद या अर्थ सुनने से अंत तक के सारे ग्रंथ की अनुक्रम से विचारणा हो, २ प्रतिश्रोत पदानुसारिणी = अंतिम पद सुनने से प्रारंभ तक के सभी पदों की विचारणा हो, ३ उभय पदानुसारिणी = मध्य के किसी एक पद के सुनने से आगे-पीछे सभी पदों का ज्ञान हो जाय, ऐसा विशिष्ट बुद्धिबल ।
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