Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० ऋषभदेवजी -- अनेक लब्धियों के स्वामी
दीक्षित हुए। वज्रनाभ मुनिराज चौदह पूर्वधर हुए और अन्य मुनि एकादशांग के पाठी हुए । कालान्तर में तीर्थकर भगवान् वज्रसेनजी निर्वाण पद को प्राप्त हुए ।
अनेक लब्धियों के स्वामी
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तप संयम से आत्मा को पवित्र करते हुए श्रीवज्रनाभ मुनिराज, अपने साथ दीक्षित हुए मुनियों के साथ विचरने लगे । प्रशस्त ध्यान एवं शुभ योग से क्षयोपशम बढ़ते उनमें अनेक प्रकार की लब्धियें उत्पन्न हुई । संयमपूर्वक तप के प्रभाव से उन मुनिवरों में कैसी
शक्ति प्राप्त हुई, उसका वर्णन संक्षेप में यहाँ किया जाता है । खेलौषधि लब्धि-- जिन मुनिराज को यह लब्धि प्राप्त हो जाय, उनके श्लेष्म के किंचित् लेप मात्र से कुष्ठ रोगी का उग्र कोढ़ दूर हो कर सुन्दर शरीर बन जाय -- -- ऐसी विशेषता ।
जल्लौषधि लब्धि - - जिनके शरीर के मेल के स्पर्श से रोगी के रोग दूर हो जाय । आमषौषधि लब्धि - जिनके शरीर के स्पर्श मात्र से रोग मिटे ।
सर्वोषधि लब्धि-- जिनके शरीर के स्पर्श से वर्षा आदि का जल, रोगहर औषधी रूप बन जाय । शरीर का स्पर्श कर के चला हुआ वायु, औषधी रूप हो जाय । मुँह अथवा पात्र में आया हुआ विषमिश्रित आहार भी अमृत के समान हितकारी बन जाय । जिनके वचनों का स्मरण ही विषहर मन्त्र के समान हितकारी हो। जिनके नख, केश, दाँत और शरीर से उत्पन्न सभी मैल, औषधी के रूप में परिणत होती है, ऐसी सर्वोषधि लब्धि के धारक । अणुत्वलब्धि * -- जिसके द्वारा सूई के छिद्र में से निकला जा सके, ऐसा सूक्ष्म शरीर बन जाय ।
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महत्व शक्ति -- जिसके प्रभाव से मेरु पर्वत के समान बड़ा शरीर बनाया जा सके । लघुत्व शक्ति- शरीर को वायु से भी अधिक हलका बनाने की शक्ति । गुरुत्व शक्ति -- इन्द्र भी जिसे सहन नहीं कर सके, ऐसा वज्र से भी भारी शरीर बनाने की शक्ति |
प्राप्ति शक्ति - पृथ्वी पर खड़े रह कर ग्रहादि को अथवा मेरु पर्वत के अग्रभाग को स्पर्श कर लेने की शक्ति ।
* अणुत्व से ले कर कामरूप शक्ति तक की सभी लब्धियाँ एक बेक्रिय लब्धि में ही समा जाती है ।
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