Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १, ११.] सामित्ताणुगमे उदयट्ठाणपर्वणी
[३७ गहिदसरीरपढमसमयप्पहुडि जाव सरीरपज्जत्तीए अणिल्लेविदचरिमसमओ त्ति एदम्हि हाणे । केवचिरं ? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एत्थ अजसगित्तीए उदएण अट्ट मंगा। जसकित्तीए उदएण एक्को चेव । कुदो ? जसकित्तीए सह सुहुम-अपज्जत्त-साहारणाणं उदयाभावा । तेण सयभंगसमासो णव | ९ ।।
पुणो अपज्जत्तमवणिय सेसचउवीसपयडीसु परघादे पक्खित्ते पंचवीसपयडीणमुदयट्ठाणं होदि । एत्थ भंगा अजसकित्तीउदएण चत्तारि । कुदो ? अपज्जत्तउदयस्स अभावादो । जसकित्तिउदएण एकको चेव । तेण भंगसमासो पंच |५|| तं कम्हि ? सरीरपज्जत्तयदपढमसमयमादि कादूग जाव आणापाणपज्जत्तीए अणिल्लेविदचरिमसमओ त्ति एदम्हि हाणे । तं केवचिरं ? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
समाधान-शरीर ग्रहण करनेके प्रथम समयसे लेकर शरीरपर्याप्ति अपूर्ण रहनेके अन्तिम समय तकके कालमें यह उदयस्थान होता है।
शंका-इस उदयस्थानका काल कितने प्रमाण है ? समाधान-जघन्य और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ।
यहां अयशकीर्ति के उदयसहित ( बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त अपर्याप्त और प्रत्येक साधारणके विकल्पसे) आठ भंग होते हैं । यशकीर्तिके उदयसहित एक ही भंग है, क्योंकि, यशकीर्ति के साथ सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण, इन प्रकृतियोंका उदय नहीं होता । इस प्रकार सब भंगोंका योग नौ हुआ (९)।
__ पूर्वोक्त उदयस्थानकी प्रकृतियों से अपर्याप्तको छोड़कर शेष चौवीस प्रकृतियोंमें परघातको मिला देने पर पच्चीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है । यहांपर भंग अयशकीर्तिके उदयके साथ (बादर-सूक्ष्म, और प्रत्येक-साधारणके विकल्पसे) चार होते हैं, क्योंकि, यहांपर अपर्याप्तका उदय नहीं होता । यशकीर्तिके उदयसहित पूर्ववत् भंग एक ही होता है । इससे यहां भंगोंका योग हुआ पांच (५)।
शंका- यह पच्चीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान किस कालमें होता है ?
समाधान-शरीरपर्याप्ति पूर्ण होनेके प्रथम समयको आदि लेकर आनप्राणपर्याप्ति अपूर्ण रहनेके अन्तिम समय तकके कालमें यह उदयस्थान होता है।
शंका-यह उदयस्थान कितने काल तक रहता है। समाधान--जघन्य और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण इस उदयस्थानका काल है।
१ मिस्सम्मि तिअंगाणं संठाणाणं च एगदरगं तु । पत्तेय दुगाणेवको उवधादोहोदि उदयगदो॥ गो. क. ५८९.
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