Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५२२] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, ११, ७. अट्ठ गदीओ समासेण ॥ ७॥
ताओ चेव गदीओ मणुस्सिणीओ मणुस्सा णेरइया तिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीओ देवा देवीओ सिद्धा त्ति अट्ट हवंति । तासिमप्पाबहुगं भणामि त्ति वुत्तं होदि ।
सव्वत्थोवा मणुस्सिणीओ ॥ ८ ॥ अट्ठण्ठं गईणं मज्झे मणुस्सिणीओ थोवाओ । कुदो ? संखेज्जपमाणत्तादो । मणुस्सा असंखेज्जगुणा ॥ ९॥
एत्थ गुणगारो सेडीए असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । कुदो ? मणुस्सअवहारकालगुणिदमणुस्सिणीहि ओवट्टिदजगसेडिपमाणत्तादो।
णेरइया असंखेज्जगुणा ॥ १० ॥ एत्थ गुणगारपमाणं पुव्वं परूविदमिदि (ण) पुणो वुच्चदे । पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ ॥ ११ ॥
संक्षेपसे गतियां आठ हैं ॥ ७॥ .
वे ही गतियां मनुष्यनी, मनुष्य, नारक, तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती, देव, देवियां और सिद्ध, इस प्रकार आठ होती हैं। उनके अल्पबहुत्वको कहते हैं, यह सूत्रका अभिप्राय है।
मनुष्यनी सबसे स्तोक हैं ॥ ८॥ आठ गतियोंके मध्यमें मनुष्यनी स्तोक हैं, क्योंकि, वे संख्यात प्रमाणवाली हैं। मनुष्यनियोंसे मनुष्य असंख्यातगुणे हैं ॥ ९ ॥
यहां गुणकार जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणीप्रथमवर्गमूल हैं, क्योंकि, वे मनुष्यअवहारकालसे गुणित मनुष्यनियोंसे अपवर्तित जगश्रेणीप्रमाण ।
मनुष्योंसे नारकी असंख्यातगुणे हैं ॥ १० ॥
यहां गुणकारका प्रमाण पूर्वमें कहा जा चुका है, इसलिये यहां उसे फिरसे (नहीं) कहते।
नारकियोंसे पंचेन्द्रिय योनिमती तिर्यंच असंख्यातगुणे हैं ॥ ११ ॥
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