Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुदाबंधो । [२, ११, ९८. अकाइया अणंतगुणा ॥ ९८ ॥
को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो । कुदो ? सुहमवाउकाइयपज्जत्तेहि ओवट्टिदअकाइयपमाणत्तादो ।
बादरवणप्फदिकाइयपज्जत्ता अणंतगुणा ॥ ९९ ॥
गुणगारो अभवसिद्धिएहितो सिद्धेहितो सनजीवाणं पढमवग्गमूलादो वि अणंतगुणो । कुदो ? सव्वजीवाणं पढमवग्गमूलादो अणंतगुणहीणेहि अकाइएहि असंखज्जलोगगुणेहि ओवट्टिदसयजीवरासिपमाणत्तादो ।
बादरवणप्फदिकाइयअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ १०० ॥ को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। बादरवणप्फदिकाइया विसेसाहिया ॥ १०१ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? बादरवणप्फदिकाइयपज्जत्तमेत्तो ।
सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्तोंसे अकायिक जीव अनन्तगुणे हैं ॥ ९८ ॥
गुणकार कितना है ? अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त जीवोंसे अपवर्तित अकायिक जीवों के बराबर है ।
अकायिक जीवोंसे बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव अनन्तगुणे हैं ॥ ९९ ॥
यहां गुणकार अभव्यसिद्धिक जीवों, सिद्धों और सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूलसे भी अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूलसे अनन्तगुणे हीन असंख्यात लोकगुणे अकायिक जीवोंसे अपवर्तित सर्व जीवराशिप्रमाण है।
बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तासे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ १०॥
गुणकार कितना है ? असंख्यात लोकप्रमाण है ।
बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तोंसे बादर वनस्पतिकायिक जीव विशेष अधिक हैं ।। १०१॥
विशेष कितना है ? बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीवोंके बराबर है।
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