Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 619
________________ ५८६) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो - [२, ११-२, ४३. देवीओ संखेज्जगुणाओ ॥ ४३॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया बत्तीसरूवाणि वा । चरिंदियपज्जत्ता संखेज्जगुणा ॥ ४४ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । कुदो ? पदरंगुलस्स संखेज्जदिभागेण चउरिंदियपज्जत्तअवहारकालेण जोदिसियदेवीणमवहारकालभूदसंखेज्जपदरंगुलेसु ओवट्टिदेसु संखेज्जरूवोवलंभादो। पंचिंदियपज्जत्ता विसेसाहिया ॥४५॥ केत्तियो विसेसो १ चउरिदियपज्जत्ताणमसंखेज्जदिभागो। को पडि भागो ? . आवलियाए असंखेज्जदिभागो । बेइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया ॥४६॥ केत्तिओ विसेसो ? पंचिंदियपज्जत्ताणमसंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो।। तीइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया ॥ ४७ ॥ ज्योतिषी देवियां संख्यातगुणी हैं ॥ ४३ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय या बत्तीस रूप गुणकार है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं ॥ ४४ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है, क्योंकि, प्रतरांगुलके संख्यातवें भागप्रमाण चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके अवहारकालसे ज्योतिषी देवियोंके अवहारकालभूत संख्यात प्रतरांगुलोंके अपवर्तित करनेपर संख्यात रूप उपलब्ध होते हैं । पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं ॥ ४५ ॥ विशेष कितना है ? चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है। द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं ॥ ४६॥ विशेष कितना है ? पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है। त्रीन्द्रिय पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं ॥ ४७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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