Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ११-३, ५८.] अप्पाबहुगाणुगमे महादंडओ
[५८९ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। सेसं सुगमं । बादरआउपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ५५॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। सेसं सुगमं । बादरवाउपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ५६ ॥ को गुणगारो ? असंखेज्जाओ सेडीओ पदरंगुलस्स असंखेजदिमागमेत्ताओ। बादरतेउअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ५७ ॥
को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा । तेसिमद्धछेदणाणि सागरोवमं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणयं ।
बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरा अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा' । ॥ ५८॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । शेष सूत्रार्थ सुगम है।
बादर अप्कायिक पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ५५ ॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। शेष सूधार्थ सुगम है।
बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ५६ ॥
गुणकार क्या है ? प्रतरांगुलके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणियां गुणकार है।
बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ५७ ।।
गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है । उनके अर्द्धच्छेद पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन सागरोपमप्रमाण हैं ।
बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ५८ ॥
१ बादरतरू निगोया पुढवी-जल-वाउ तेउ तो सुहुमा । तत्तो विसेसअहिया पुढवी जल-पवणकाया उ ।। पं.सं. २,७३.
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