Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 621
________________ ५८८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११-२, ५२. केत्तिओ विसेसो ? तेइंदियअपज्जत्तअसंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥५२॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कुदो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागोवट्टिदपदरंगुलेग बादरवण'फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्त अवहारकालेण बेइंदियअपज्जत्तअवहारकाले भागे हिदे पलिदोवमस्स असंखेजदिभागोवलंभादो। बादरणिगोदजीवा णिगोदपदिट्ठिदा पज्जता असंखेज्जगुणा ॥५३॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? हेद्विमव्वस्स अवहारकाले उवरिमदवस अवहारकालेण भागे हिदे आवलियाए असंखेज्जदिमागोवलंभादो । बादरपुढविपजत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ५४ ॥ विशेष कितना है ? श्रीन्द्रिय अपर्याप्त जीवों के असंख्यातवें भागप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥५२ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, पल्योपमके असंख्यातवें भागसे अपवर्तित प्रतरांगुलप्रमाण बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तोंके अबहारकाल से द्वीन्द्रिय अपर्याप्तोंके अवहारकालको भाजित करनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग उपलब्ध होता है। बादर निगोदजीव निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्त असंख्यातगुणे हैं ।। ५३ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असं ख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, अधस्तन अर्थात् पूर्वोक्त द्रव्यके अवहारकालमें उपरिम अर्थात् प्रस्तुत द्रव्यके अवहारकालका भाग देनेपर आवलीका असंख्यातवां भाग प्राप्त होता है। बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ५४ ॥ १ पज्जतवायरपत्तेयतरू असंखेज्ज इति णिगोयाओ। पुढवी आऊ वाऊ बायरअपज्जतते उ तओ ॥ 4.बं. १, ७२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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