Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ११-२, ७४.] अप्पाबहुगाणुगमे महादंडओ
[ ५९३ सुहुमवाउकाइयपज्जत्ता विसेसाहिया ॥ ७० ॥
केत्तियो विसेसो ? असंखेज्जा लोगा सुहुमाउकाइयपज्जत्ताणमसंखेजदिभागो । को पडिभागो ? असंखेज्जा लोगा।
अकाइया अणंतगुणा ॥ ७१ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो । सेसं सुगमं । बादरवणप्फदिकाइयपज्जत्ता अणंतगुणा ॥ ७२ ॥
को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहिंतो सिद्धेहिंतो सव्वजीवपढमवग्गमूलादो वि अणतगुणो । कुदो ? असंखेज्जलोगगुणिदअकाइएहि ओवट्टिदसव्वजीवपमाणत्तादो ।
बादरवणप्फदिकाइयअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ७३ ॥ को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। बादरवणप्फदिकाइया विसेसाहिया ॥ ७४ ॥
सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं ॥ ७० ॥
विशेष कितना है ? सूक्ष्म अकायिक पर्याप्तोंके असंख्यातवें भाग असंख्यात लोक विशेष है । प्रतिभाग क्या है ? असंख्यात लोक प्रतिभाग है।
अकायिक जीव अनन्तगुणे हैं ॥ ७१ ॥
गुणकार क्या है ? अभब्यसिद्धिकोसे अनन्तगुणा गुणकार है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव अनन्तगुणे हैं ॥ ७२ ॥
गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धिकोसे, सिद्धोंसे और सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूलसे भी अनन्तगुणा गुणकार है, क्योंकि, वह असंख्यात लोकसे गुणित अकायिक जीवोंसे अपवर्तित सर्व जीवराशिप्रमाण है।
बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ७३ ॥ गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है ।( देखो पुस्तक ३, पृ. ३६५ ) बादर वनस्पतिकायिक विशेष अधिक हैं ॥ ७४ ॥
१ प्रतिषु · संखेब्जा समया' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' सहुम-' इति पाठः ।
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