Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ११, १०६.] अप्पाबहुगाणुगमे कायमगणा
[ ५४९ सुहमवणप्फदिकाइयअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ १०२ ॥ को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। सुहुमवणप्फदिकाइयपज्जत्ता संखेज्जगुणा ॥ १०३ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । सुहुमवणप्फदिकाइया विसेसाहिया ॥ १०४ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? सुहुमवणप्फदिकाइयअपज्जत्तमेत्तो । वण'फदिकाइया विसेसाहिया ॥ १०५ ॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? बादरवणप्फदिकाइयमेत्तो । बादरवणप्फदिकाइएसु बादरणिगोदपदिट्ठिदापदिद्विदा ण अस्थि, तेसिं वणप्फदिकाइयववएसामावादो ।
णिगोदजीवा विसेसाहिया ॥ १०६ ॥
बादर वनस्पतिकायिकोंसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ १०२॥
गुणकार कितना है ? असंख्यात लोकप्रमाण है।
सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तोंसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं ॥ १०३॥
गुणकार कितना है ? संख्यात समयप्रमाण है।
सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तोंसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव विशेष आधिक हैं ॥ १०४॥
विशेष कितना है ? सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवोंके बराबर है। सूक्ष्म वनस्पतिकायिकोंसे वनस्पतिकायिक जीव विशेष अधिक हैं ॥ १०५ ॥
विशेष कितना है? बादर वनस्पतिकायिक जीवोंके बराबर है । बादर वनस्पतिकायिक जीवों में बादर-निगोद-प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित जीव नहीं है, क्योंकि, उनके 'वनस्पतिकायिक' संज्ञाका अभाव है।
वनस्पतिकायिकोंसे निगोद जीव विशेष अधिक हैं ॥१०६॥
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