Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, १७.. प्पत्तीए । एसा परिहारसुद्धिसंजमलद्धी जहणिया कस्स होदि १ सव्वसंकिलिट्ठस्स सामाइयछेदोवट्ठावणाभिमुहचरिमसमयपरिहारसुद्धिसंजदस्स।
तस्सेव उक्कस्सिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७० ॥ कुदो १ असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उपरि गंतूणुप्पत्तीए ।
सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदस्स उक्कस्सिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७१ ॥
कुदो १ तत्तो उवरि असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि गंतूग सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजमस्स उक्कस्सलद्धीए समुप्पत्तीदो। एसा कस्स होदि ? चरिमसमयअणियट्टिस्स।
सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजमस्स जहणिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७२॥
जाकर उत्पन्न हुई है।
शंका-यह जघन्य परिहारशुद्धिसंयमलब्धि किसके होती है ?
समाधान-उक्त लब्धि सर्वसंक्लिष्ट सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमके अभिमुख हुए अन्तिमसमयवर्ती परिहारशुद्धिसंयतके होती है।
उसी ही परिहारशुद्धिसंयतकी उत्कृष्ट चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥ १७० ॥ क्योंकि, उसकी उत्पत्ति असंख्यात लोकमात्र छह स्थान ऊपर जाकर है ।
सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतकी उत्कृष्ट चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥ १७१ ॥
क्योंकि, उससे ऊपर असंख्यात लोकमात्र छह स्थान जाकर सामायिकछेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमकी उत्कृष्ट लब्धिकी उत्पत्ति होती है।
शंका-यह लब्धि किसके होती है ? समाधान-अन्तिमसमयवर्ती अनिवृत्तिकरणके होती है। सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयमकी जघन्य चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥ १७२ ॥
१ प्रतिषु · संजमस्स ' इति पाठः ।
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