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________________ ५६६] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, १७.. प्पत्तीए । एसा परिहारसुद्धिसंजमलद्धी जहणिया कस्स होदि १ सव्वसंकिलिट्ठस्स सामाइयछेदोवट्ठावणाभिमुहचरिमसमयपरिहारसुद्धिसंजदस्स। तस्सेव उक्कस्सिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७० ॥ कुदो १ असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उपरि गंतूणुप्पत्तीए । सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदस्स उक्कस्सिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७१ ॥ कुदो १ तत्तो उवरि असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि गंतूग सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजमस्स उक्कस्सलद्धीए समुप्पत्तीदो। एसा कस्स होदि ? चरिमसमयअणियट्टिस्स। सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजमस्स जहणिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७२॥ जाकर उत्पन्न हुई है। शंका-यह जघन्य परिहारशुद्धिसंयमलब्धि किसके होती है ? समाधान-उक्त लब्धि सर्वसंक्लिष्ट सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमके अभिमुख हुए अन्तिमसमयवर्ती परिहारशुद्धिसंयतके होती है। उसी ही परिहारशुद्धिसंयतकी उत्कृष्ट चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥ १७० ॥ क्योंकि, उसकी उत्पत्ति असंख्यात लोकमात्र छह स्थान ऊपर जाकर है । सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतकी उत्कृष्ट चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥ १७१ ॥ क्योंकि, उससे ऊपर असंख्यात लोकमात्र छह स्थान जाकर सामायिकछेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमकी उत्कृष्ट लब्धिकी उत्पत्ति होती है। शंका-यह लब्धि किसके होती है ? समाधान-अन्तिमसमयवर्ती अनिवृत्तिकरणके होती है। सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयमकी जघन्य चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥ १७२ ॥ १ प्रतिषु · संजमस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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