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________________ २, ११, १७४. ] अप्पाबहुगाणुगमे संजममग्गणा कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि अंतरिदणुपपत्तीदो। एसा कस्स होदि ? उवसमसेडीदो ओयरमाणचरिमसमयसुहमसांपराइयस्स । तस्सेव उक्कस्सिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७३ ॥ कुदो ? अणंतगुणाए सेडीए जहण्णादो उवरि अंतोमुहुत्तं गंतूणप्पत्तीदो । एसा कस्स होदि ? चरिमसमयसुहुमसांपराइयखवगस्स । जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदस्स अजहण्णअणुक्कस्सिया चरित्तलद्धी अणंतगुणा ॥ १७४ ॥ कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि अंतरिदूण समुप्पत्तीदो । किमहमेसा लद्धी एयवियप्पा ? कसायाभावेण वड्वि हाणिकारणाभावादो । तेणेव कारणेण अजहण्णा अणुक्कस्सा च । एत्थ केण कारणेण संजमलद्धिट्ठाणप्पाबहुअं भणिदं ? वुच्चदे क्योंकि, उसकी उत्पत्ति असंख्यात लोकमात्र छह स्थानोंका अन्तर करके है। शंका-यह किसके होती है ? समाधान- उपशमश्रेणीसे उतरनेवाले अन्तिमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके होती है। उसी ही सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयमकी उत्कृष्ट चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥ १७३ ॥ क्योंकि, जघन्यके ऊपर अनन्तगुणित श्रेणीरूपसे अन्तर्मुहूर्त जाकर उसकी उत्पत्ति है। शंका-यह किसके होती है ? समाधान-यह अन्तिमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके होती है। यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतकी अजघन्यानुत्कृष्ट चरित्रलब्धि अनन्तगुणी है ॥१७४ ॥ क्योंकि, उसकी उत्पत्ति असंख्यात लोकमात्र छह स्थानोंका अन्तर करके है। शंका-यह लब्धि एक विकल्परूप क्यों है ? समाधान-क्योंकि, कषायका अभाव हो जानेसे उसकी वृद्धि-हानिके कारणका भभाव हो गया है। इसी कारण वह अजघन्यानुत्कृष्ट भी है। शंका-यहां किस कारणसे संयमलब्धिस्थानोंका अल्पबहुत्व कहा गया है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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