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५६८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ११, १७५. संजदाणं जीवप्पाबहुगसाहणट्ठमागदं । जस्स संजमस्स लट्ठिाणाणि बहुआणि तत्थ जीवा वि बहुआ चेव, जत्थ थोवाणि तत्थ थोवा चेव होंति त्ति । जदि एवं' (तो) जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदाणं सव्वत्थोवत्तं पसज्जदे, णिव्यियप्पेगसंजमलद्धिट्ठाणत्तादो १ ग एस दोसो, अद्धमस्सिदूण तेसिं बहुत्तुवदेसादो ।
दसणाणुवादेण सव्वत्थोवा ओहिदसणी ॥ १७५॥ कुदो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागत्तादो । चखुदंसणी असंखेज्जगुणा ॥ १७६॥
गुणगारो जगपदरस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ सेडीओ । कुदो ? असंखेज्जपदरंगुलोवट्टिदजगपदरप्पमाणत्तादो।
केवलदंसणी अणंतगुणा ॥ १७७ ॥ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो । कुदो ? जगपदरस्स असंखेज्जदिभागेणो
समाधान-इस शंकाका उत्तर कहते हैं। संयत जीवोंके अल्पबहुत्वके साधनार्थ उक्त लब्धिस्थानोंका अल्पबहुत्व प्राप्त हुआ है। जिस संयमके लब्धिस्थान बहुत हैं उसमें जीव भी बहुत ही है, तथा जिस संयमके लब्धिस्थान थोड़े हैं उसमें जीव भी थोड़े ही हैं।
शंका - यदि ऐसा है तो यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतोंके सबमें स्तोकपनेका प्रसंग आवेगा, क्योंकि, उनके निर्विकल्प एक संयमलब्धिस्थान है।
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, कालका आश्रय करके उनके बहुत होनेका उपदेश दिया गया है।
दर्शनमार्गणाके अनुसार अवधिदर्शनी सबमें स्तोक हैं ॥ १७५ ॥ क्योंकि, वे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । चक्षुदर्शनी असंख्यातगुणे हैं ॥ १७६ ॥
गुणकार जगप्रतरके असंख्यातवें भाग असंख्यात जगश्रेणियां है, क्योंकि, वह असंख्यात प्रतरांगुलोंसे अपवर्तित जगप्रतरप्रमाण है।
केवलदर्शनी अनन्तमुणे हैं ॥ १७७॥ गुणकार अभव्यासिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह जगप्रतरके
१ प्रतिषु ' एवं ' इति पाठः ।
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