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________________ २, ११, १८१.] अप्पाबहुगाणुगमे लेस्सामग्गणा [५६९ वट्टिदसिद्धप्पमाणत्तादो। अचक्खुदंसणी अणंतगुणा ॥ १७८ ॥ गुणगारो अभवसिद्धिएहितो' सिद्धेहिंतो सबजीवाणं पढमवग्गमूलादो वि अणंतगुणो । कारणं सुगमं । लेस्साणुवादेण सव्वत्थोवा सुक्कलेस्सिया ॥ १७९ ॥ कुदो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागप्पमाणत्तादो। तं पि कुदो ? सुट्ठ सुभलेस्साणं समवारण कत्थ वि केसि पि संभवादो । पम्मलेस्सिया असंखेज्जगुणा ॥ १८० ॥ गुणगारो जगपदरस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाओ सेडीओ । कुदो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागेण गुणिदपदरंगुलोवट्टिदजगपदरप्पमाणत्तादो । तेउलेस्सिया संखेज्जगुणा ॥ १८१ ॥ असंख्यातवें भागसे अपवर्तित सिद्धोक बराबर है। केवलदर्शनियोंसे अचक्षुदर्शनी अनन्तगुणे हैं ॥ १७८ ॥ गुणकार अभव्यसिद्धिकों, सिद्धों तथा सर्व जीवों के प्रथम वर्गमूलसे भी अनन्तगुणा है । कारण सुगम है। लेश्यामार्गणाके अनुसार शुक्ललेश्यावाले सबमें स्तोक हैं ॥ १७९ ॥ क्योंकि, वे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। शंका-वह भी कैसे? समाधान-क्योंकि, अतिशय शुभ लेश्याओंका समुदाय कहींपर किन्हींके ही सम्भव है। शुक्ललेश्यावालोंसे पद्मलेश्यावाले असंख्यातगुणे हैं ॥ १८० ॥ गुणकार जगप्रतरके असंख्यातवें भाग असंख्यात जगश्रेणी है, क्योंकि, वह पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित प्रतरांगुलसे अपवर्तित जगप्रतरप्रमाण है। पछलेश्यावालोंसे तेजोलेश्यावाले संख्यातगुणे हैं ॥ १८१ ॥ १ अप्रतौ ' अभवसिद्धिएहि अणंतगुणेहितो सिद्धेहितो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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