SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७० ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [ २, ११, १८२. कुदो ? पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीणं संखेज्जदिभागेण पम्मलेस्सियदव्वेण तेउलेस्सियदव्वे भागे हिदे संखेज्जरूबोवलंभादो। अलेस्सिया अणंतगुणा ॥ १८२ ॥ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो । कारणं सुगमं । काउलेस्सिया अणंतगुणा ॥ १८३ ॥ गुणगारो अभवसिद्धिएहितो सिद्धेहितो सबजीवपढमवग्गमूलादो वि अणतगुणो। कारणं सुगम । णीललेस्सिया विसेसाहिया ॥ १८४ ॥ केत्तियो विसेसो ? अणंतो का उलेस्सियाणमसंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । किण्णलेस्सिया विसेसाहिया ॥ १८५॥ केत्तियो विसेसो ? अणतो णीललेस्सियाणमसंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । क्योंकि, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंके संख्यातवें भागप्रमाण पद्मलेश्यावालोंके द्रव्यका तेजोलेश्यावालोंके द्रव्यमें भाग देनेपर संख्यात रूप उपलब्ध होते हैं । तेजोलेश्यावालोंसे लेश्यारहित अर्थात् अयोगी व सिद्ध जीव अनन्तगुणे हैं ॥१८२॥ गुणकार अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा है । कारण सुगम है। अलेश्यिकोंसे कापोतलेश्यावाले अनन्तगुणे हैं ॥ १८३ ॥ गुणकार अभव्यसिद्धिकोसे, सिद्धोंसे और सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूलसे भी भनन्तगुणा है। कारण सुगम है । कापोतलेश्यावालोंसे नीललेश्यावाले विशेष अधिक हैं ॥ १८४ ॥ विशेष कितना है ? कापोतलेझ्यावालों के असंख्यातवें भाग अनन्त है । प्रतिभाग क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है। नीललेश्यावालोंसे कृष्णलेश्यावाले विशेष अधिक है ।। १८५ ।। विशेष कितना है ? विशेष अनन्त है जो नीललेश्यावालोंके असंख्यातवें भागप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy