Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, २०१. आहाराणुवादेण सव्वत्थोवा अणाहारा अबंधा ॥ २०३ ॥ कुदो ? सिद्धाजोगीणं गहणादो। बंधा अणंतगुणा ॥ २०४॥
गुणगारो अणंताणि सव्वजीवाणं पढमवग्गमूलाणि । कुदो ? सन्यजीवाणमसंखेज्जदिभागस्स अणंतभागत्तादो ।
आहारा असंखेज्जगुणा ॥ २०५ ॥
गुणगारो अंतोमुहृत्तं । कुदो ? बंधगअणाहारदव्वेण आहारदव्ये भागे हिदे अंतोमुहुत्तुवलंभादो ।
एवपप्पाबहुगेत्ति समत्तमणिओगदारं ।
आहारमार्गणाके अनुसार अनाहारक प्रबन्धक जीव सबमें स्तोक हैं ॥ २०३ ॥ क्योंकि, यहां सिद्धों और अयोगी जीवोंका ग्रहण किया गया है। अनाहारक अबन्धकोंसे अनाहारक बंधक जीव अनन्तगुणे हैं ।। २०४ ॥
गुणकार सर्व जीवोंके अनन्त प्रथम वर्गमूल हैं, क्योंकि, सर्व जीवोंके असंख्यातवें भागके अनन्तभागत्व है । अर्थात् अनाहारक बंधक जीव सर्व जीव राशिके असंख्यातवें भाग हैं और अनाहारक अबंधक अनन्तवें भाग हैं। अतएव उन दोनोंके बीच गुणकारका प्रमाण अनन्त होगा ही।
अनाहारक बंधकोंसे आहारक जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ २०५ ॥
गुणकार अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि, बन्धक अनाहारक द्रव्यका आहारक द्रव्यमें भाग देनेपर अन्तर्मुहूर्त उपलब्ध होता है ।
इस प्रकार अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
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