Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, १३६. कुदो ? सण्णीसु गब्भजेसु णqसयवेदाणं पाएण संभवाभावादो । सण्णिइथिवेदा गब्भोवक्कंतिया संखेज्जगुणा ॥ १३६ ॥ कुदो ? सण्णिगब्भजेसु पुरिसवेदएहितो बहुआणं इत्थिवेदयाणमुवलंभादो । सणिणqसयवेदा सम्मुच्छिमपज्जत्ता संखेज्जगुणा ॥१३७॥
कुदो ? सण्णिगम्भजेहिंतो सण्णिसम्मुच्छिमाणं संखेज्जगुणत्तादो । सम्मुच्छिमेसु इत्थि-पुरिसवेदा णस्थि । कुदो वगम्मदे ? इस्थि-पुरिसवेदाणं सम्मुच्छिमाधियारे अप्पाबहुगपरूवणाभावादो।
सणिणqसयवेदा सम्मुच्छिमअपज्जत्ता असंखेजगुणा॥१३८॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जादिभागो। कुदो वगम्मदे ? परमगुरूवदेसादो।
क्योंकि, संक्षी गर्भजोंमें नपुंसकवेदियोकी प्रायः सम्भावना नहीं है ।
संज्ञी पुरुषवेदी गीपक्रान्तिकोंसे संज्ञी स्त्रीवेदी ग पक्रान्तिक जीव संख्यात. गुणे हैं ॥ १३६ ॥
क्योंकि, संशी गर्भजों में पुरुषवेदियोंसे स्त्रीवेदी जीव बहुत पाये जाते हैं।
संज्ञी स्त्रीवेदी ग पक्रान्तिकोंसे संज्ञी नपुंसकवेदी सम्मूर्छिम पर्याप्त संख्यातगुणे हैं ॥ १३७॥
क्योंकि, संशी गर्भजोंसे संक्षी सम्मूच्छिम जीव संख्यातगुणे है। सम्मूछिम जीवों में स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी नहीं है ।
शंका-यह कहांसे जाना जाता है ?
समाधान-सम्मूच्छिमाधिकारमें स्त्रीवेदी और पुरुषवेदियोंके अल्पबहुत्वका प्ररूपण न करनेसे जाना जाता है।
संज्ञी नपुंसकवेदी सम्मूछिम पर्याप्तोंसे संज्ञी नपुंसकवेदी सम्मूच्छिम अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं । १३८ ॥
गुणकार कितना है ? आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शंका-यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान-यह परम गुरुके उपदेशसे जाना जाता है।
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