Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, १६. इंदियाणुवादेण सव्वत्थोवा पंचिंदिया ॥ १६ ॥ कुदो ? पंचण्हमिंदियाणं खवोवसमोवलद्धीए सुगु दुल्लभत्तादो । चउरिदिया विसेसाहिया ॥ १७ ॥
कुदो ? पंचण्हमिंदियाणं सामग्गीदो चदुण्हमिंदियाणं सामग्गीए अइसुलभत्तादो। एत्थ विसेसो पदरस्स असंखेज्जदिमागो। तस्स को पडिभागो ? पदरंगुलस्स असंखेज्जदिभागो पडिभागो । पंचिंदियरासिमावलियाए असंखेज्जदिभागेण भागे हिदे विसेसो आगच्छदि । तं पंचिंदिएसु पक्खित्ते चउरिदिया होति । एत्तिओ चेव विसेसो होदि त्ति कधं णव्वदे ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो ।
तीइंदिया विसेसाहिया ॥ १८ ॥
कुदो ? चउण्हमिंदियाणं सामग्गीदो तिहमिंदियाणं सामग्गीए अइसुलभत्तादो। एत्थ विसेसो चउरिंदियाणं असंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? आवलियाए
इन्द्रियमार्मणाके अनुसार पंचेन्द्रिय जीव सबमें स्तोक हैं ॥ १६ ॥ क्योंकि, पांचों इन्द्रियोंके क्षयोपशमकी उपलब्धि अतिशय दुर्लभ है। पंचेन्द्रियोंसे चतुरिन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं ॥ १७ ॥
क्योंकि, पांच इन्द्रियोंकी सामग्रीसे चार इन्द्रियों की सामग्री अति सुलभ है। । यहां विशेषका प्रमाण जगप्रतरका असंख्यातवां भाग है ।
शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ? समाधान-प्रतरांगुलका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है।
पंचेन्द्रियराशिको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करनेपर विशेषका प्रमाण आता है । उसे पंचेन्द्रियोंमें मिलाने पर चतुरिन्द्रिय जीवोंका प्रमाण होता है।
शंका-इतना ही विशेष है यह कैसे जाना जाता है ? समाधान- यह आचार्य परम्परागत उपदेशसे जाना जाता है। चतुरिन्द्रियोंसे त्रीन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं ॥ १८ ॥
क्योंकि, चार इन्द्रियोंकी सामग्रीसे तीन इन्द्रियोंकी सामग्री अति सुलभ है। पहां विशेष चतुरिन्द्रिय जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ।
शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ?
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