Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२, ११, ८९.] अप्पाबहुगाणुगमे कायमग्गणा
[५४५ बादरणिगोदजीवा णिगोदपदिट्टिदा अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥८६॥
___एत्थ गुणगारो असंखेज्जा लोगा। तेसिं छेदणाणि पलिदोवमस्स असंखेनदिभागो ।
बादरपुढविकाइया अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ८७ ॥ गुणगारो असंखेज्जा लोगा । तेसिं छेदणाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । वादरआउकाइयअपज्जत्ता असंखज्जगुणा ॥ ८८ ॥ गुणगारो असंखेज्जा लोगा । तेसिं छेदणाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । बादरवाउअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ८९ ॥
गुणगारपमाणमसंखेज्जा लोगा। तेसिं छेदणाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।
बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्तोंसे निगोदप्रतिष्ठित बादर निगोदजीव अपर्याप्त असंख्यातगुणे हैं ।। ८६ ॥
यहां गुणकार असंख्यात लोक है। उनके अर्द्धच्छेद पल्योपमके असंख्यातर्षे भागप्रमाण हैं।
निगोदप्रतिष्ठित बादर निगोद जीव अपर्याप्तोंसे वादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ।। ८७ ॥
गुणकार असंख्यात लोक है । उनके अर्द्धच्छेदं पल्योपमके असंख्यातवें भाग. प्रमाण है।
बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तोंसे बादर अप्कायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ८८ ॥
गुणकार असंख्यात लोक है । उनके अर्द्धच्छेद पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं।
बादर अप्कायिक अपर्याप्तोंसे बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे
गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है। उनके अर्धच्छेद् पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org