Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ११, ३४.] अप्पाबहुगाणुगमै इंदियमगणा
[५२९ बादरेइंदियपज्जत्ता अणंतगुणा ॥ ३१ ॥ कुदो ? सव्वजीवाणमसंखज्जदिमागत्तादो । ( बादरेइंदियअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ३२ ॥
कुदो ? अपज्जत्तुप्पत्तिपाओग्गअसुहपरिणामाणं बहुत्तादो। एत्थ गुणगारो असंखेज्जा लोगा । कधमेदं णव्यदे ? आइरियपरंपरागदअविरुद्धोवदेसादो ।)
बादरेइंदिया विसेसाहिया ॥ ३३ ॥ केत्तियो विसेसो ? बादरेइंदियपज्जत्तमेत्तो । (सुहुमेइंदियअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ३४ ॥
कुदो ? सुहुमेइंदिएसु उप्पत्तिणिमित्तपरिणामबाहुल्लियादो। एत्थ गुणगारो असंखेज्जा लोगा । कुदो एदमवगम्मदे ? गुरूवदेसादो ।)
अनिन्द्रियोंसें बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव अनन्तगुणे हैं ॥ ३१ ।। क्योंकि, वे सब जीवोंके असंख्यातवें भाग हैं । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तोंसे बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥३२॥
क्योंकि, अपर्याप्तोंमें उत्पत्तिके योग्य अशुभ परिणामवाले जीव बहुत हैं। यहां गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-यह आचार्यपरम्परागत अविरुद्ध उपदेशसे जाना जाता है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंसे बादर एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३३ ॥ शंका-यहां विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके बराबर यहां विशेषका प्रमाण है। बादर एकन्द्रियोंसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं॥ ३४॥
क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होनेके निमित्तभूत परिणामोंकी प्रचुरता है। यहां गुणकार असंख्यात लोक हैं।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ? समाधान- यह गुरुके उपदेशसे जाना जाता है।
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