Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५२८] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, ११, २८. पंचिंदियअपज्जत्ताणमसंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? आवलियाए असंखेजदिभागो।
तीइंदियअपज्जत्ता विसेसाहिया ॥ २८ ॥ ..
कुदो ? पावभरेण बहुआणं चक्खिदियाभावादो। एत्थ विसेसपमाणं चउरिदियअपज्जत्ताणमसंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? आवलियाए असंखज्जदिभागो ।
बीइंदियअपज्जत्ता विसेसाहिया ॥ २९ ॥
कारणं ? पावेण णघाणिदियाणं बहुआण संभवादो । एत्थ विसेसपमाणं तीइंदियअपज्जत्ताणमसंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? आवलियाए असंखज्जदिभागो।
अणिंदिया अणंतगुणा ॥ ३० ॥
कुदो ? अणंतकालसंचिदा होदूण वयविरहिदत्तादो । एत्थ गुणगारो पुर्व परूविदो।
विशेषका प्रमाण पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका असंख्यातवां भाग है।
शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ? समाधान--आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिमाग है। चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तोंसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं ॥ २८ ॥
क्योंकि, पापके भारसे बहुत जीवोंके चक्षु इन्द्रियका अभाव है। यहां विशेषका प्रमाण चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका असंख्यातवां भाग है।
शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ? । समाधान-आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है। त्रीन्द्रिय अपर्याप्तोंसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं ॥ २९ ॥
क्योंकि, पापसे जिगकी घ्राण इन्द्रिय नष्ट है ऐसे जीव बहुत सम्भव हैं । यहां विशेषका प्रमाण त्रीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका असंख्यातवां भाग है।
शंका- उसका प्रतिभाग क्या है ? समाधान-आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है। द्वीन्द्रिय अपर्याप्तोंसे अनिन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं ॥ ३० ॥
क्योंकि, वे अनन्त काल में संचित होकर व्ययसे रहित हैं। यहां गुणकार पूर्वप्ररूपित है।
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