Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५२६ ]
छक्खंडागमे खुदाबंधो
अप्पा बहुगपरूवणट्ठमुत्तरमुत्तं भणदिसव्वत्थोवा चउरिंदियपज्जता ॥ २२ ॥
कुद विससाद |
पंचिंदियपज्जत्ता विसेसाहिया ॥ २३ ॥
कारण पुव्वभणिदं । एत्थ विसेसो चउरिंदियाणं असंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो ।
बीइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया ॥ २४ ॥
कारणं पुव्वमेव परुविदं । एत्थ विसेसपमाणं पंचिंदियपज्जत्ताणमसंखेज्जदिभागो । तेसिं को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । तीइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया ।। २५ ।।
जीवराशिप्रमाण है । अन्य प्रकार से भी अल्पबहुत्वके निरूपण करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीव सबमें स्तोक हैं || २२ ॥
क्योंकि, ऐसा स्वभाव से है ।
[ २, ११, २२.
चतुरिन्द्रिय पर्याप्तों से पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं || २३ ॥
स्वभावरूप कारण पूर्वमें ही कहा जा चुका है। यहां विशेषका प्रमाण चतुरिन्द्रिय जीवोंका असंख्यातवां भाग है ।
शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ?
समाधान - आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है ।
पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंसे द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं || २४ ||
इसका कारण पूर्वमें ही कहा जा चुका है। यहां विशेषका प्रमाण पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका असंख्यातवां भाग है ?
- उनका प्रतिभाग क्या है ?
शंका
समाधान --- आवलीका असंख्यातवां भाग उनका प्रतिभाग है ।
द्वीन्द्रिय पर्याप्तों त्रीन्द्रिय पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं ।। २५ ।।
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