Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२, ५, १५३.] दयपमाणाणुगमे सुक्कलेस्सियाणं पमाणं । २९३ लेस्सिया होति । पुणो तत्थ भवणवासिय-वाणवेतर-तिरिक्ख-मणुस्सतेउलेस्सियरासिम्हि पक्खित्ते सव्या तेउलेस्सियरासी होदि । तेण जोदिसियदेवेहि सादिरेयमिदि वुत्तं । सेस सुगमं ।
पम्मलेस्सिया दब्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १५०॥ . सुगमं । मणिपंचिंदियतिरिक्खजोणिणीणं संखेज्जदिभागों ॥ १५१ ॥
संखेज्जपदरंगुलेहि तप्पाओग्गेहि जगपदरम्मि भागे हिदे पम्मलेस्सियरामी होदि । सेसं सुगमं ।
सुक्कलेस्सिया दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १५२ ॥ सुगमं । पलिदोवमस्स असंखेजदिभागों ॥ १५३ ॥
उतने तेजोलेश्यावाले ज्योतिषी देव हैं। पुनः उसमें भवनवासी, वानव्यन्तर, तिर्यच और मनुष्य तेजोलेश्यावालोंकी राशिको जोड़नेपर सर्व तेजोलेश्यावालोंकी राशि होती है। इसी कारण 'तेजोलेश्यावालोंका प्रमाण ज्योतिषी देवोंसे कुछ अधिक है ऐसा कहा है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
पद्मलेश्यावाले जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १५० ।। यह सूत्र सुगम है। संजी पंचेन्द्रिय तियच योनिमतियोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ १५१ ॥
तत्प्रायोग्य संख्यात प्रतरांगुलोका जगप्रतरमें भाग देनेपर पद्मलेश्यावालोंका प्रमाण होता है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
शुक्ललेश्यावाले जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ॥ १५२ ॥ यह सूत्र सुगम है।
शुक्ललेश्यावाले जीव द्रव्यप्रमाणसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ १५३॥
, पदमलेश्या द्रव्यप्रमाणेण संक्षिपंचेन्द्रियतिर्यग्योनीनां संख्यभागाः । त. रा. ४, २२, १०. २ शुललेश्या पल्योपमस्यासंखेयभागाः । त. रा. ४, २२, १०.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org