Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १०, ५६.] भागाभागाणुगमे णाणमग्गणा
कुदो ? लोभकसाइदव्वेण सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे किंचूणचत्तारिरूवोबलंभादो ।
अकसाई सब्बजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ५३ ॥ सुगमं । अणंतो भागो ॥ ५४॥ कुदो ? अकसाइदव्येण सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूबोवलंभादो ।
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ५५॥
सुगमं । अणंता भागा ॥५६॥ कुदो ? अणप्पिदणाणेहि सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूवोवलंभादो ।
क्योंकि, लोभकषायी द्रव्यका सर्व जीवराशिमें भागदेनेपर कुछ कम चार रूप प्राप्त होते हैं।
अकषायी जीव सब जीवोंके कितने। भागप्रमाण हैं ? ॥ ५३ ॥ यह सूत्र सुगम है। अकषायी जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ।। ५४ ॥
क्योंकि, अकषायी द्रव्यका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप प्राप्त होते हैं।
ज्ञानमार्गणाके अनुसार मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी जीव सब जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ५५ ॥
यह सूत्र सुगम है। मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी जीव सब जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं
॥५६॥
क्योंकि, अविवक्षित ज्ञानवाले जीवोंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनम्त रूप उपलब्ध होते हैं।
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