Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १०, ४७.] भागाभागाणुगमे वेदमागणा
[५०९ कुदो ? अप्पिददव्येण सव्वरासिम्हि भागे हिदे संखेज्जरूवाणमुवलंभादो । कम्मइयकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥४३॥ सुगमं । असंखेजदिभागो ॥ ४४ ॥ कुदो ? अप्पिददव्येण सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे असंखेज्जाबोवलंभादो ।
वेदाणुवादेण इत्थिवेदा पुरिसवेदा अवगदवेदा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥४५॥
सुगमं । अणंतो भागो ॥ ४६॥ कुदो ? अप्पिददव्येहि सव्यजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूबोवलंभादो । णसयवेदा सबजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ४७ ॥
क्योंकि, विवक्षित द्रव्यका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर संख्यात रूप उपलब्ध होते हैं।
कार्मणकाययोगी जीव सब जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ४३ ॥ यह सूत्र सुगम है। कार्मणकाययोगी जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ।। ४४ ॥
क्योंकि, विवक्षित द्रव्यका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर असंख्यात रूप उपलब्ध होते हैं।
वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और अपगतवेदी जीव सर्व जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥ ४५ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव सर्व जीवोंके अनन्त भागप्रमाण हैं ॥ ४६ ॥ क्योंकि, विवक्षित द्रव्योंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप उपलब्ध नपुंसकवेदी जीव सर्व जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ।। ४७ ।।
१ प्रतिषु — संखेज्ज- ' इति पाठः ।
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