Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १०, ३८.] भागाभागाणुगमे जोगमगणा
[५०७ णिदेसाभावादो। तदो तेहि सुत्तेहि एदेसिं सुत्ताणं विरोहो होदि ति मणिदे जदि एवं तो उवदेसं लक्षण इदं सुत्तं इदं चासुत्तमिदि आगमणिउणा भणंतु । ण च अम्हे एत्थ वोत्तुं समत्था, अलदोवदेसत्तादो।
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगि-वेउव्वियकायजोगिवेउब्वियमिस्सकायजोगि-आहारकायजोगि----आहारमिस्सकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ३५॥
सुगमं । अणंतो भागो ॥ ३६॥ कुदो ? एदेहि मुनजीवरामिम्हि भागे हिदे अणंतरूवावलंभादो। कायजोगी सबजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ३७॥ सुगमं । अणंता भागा॥ ३८ ॥ .
विरोध होगा?
समाधान-यदि ऐसा है तो उपदेशको प्राप्त कर यह सूत्र है और यह मूत्र नहीं है ऐसा आगमनिपुण जन कह सकते हैं । किन्तु हम यहां कहने के लिये समर्थ नहीं हैं, क्योंकि, हमें वैसा उपदेश प्राप्त नहीं है।
योगमार्गणाके अनुसार पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, क्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीव सय जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ।। ३५ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपयुक्त जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ॥ ३६ ॥ क्योंकि, इनका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप प्राप्त होते हैं। काययोगी जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ।। ३७ ॥ यह सूत्र सुगम है। काययोगी जीव सब जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं ।। ३८ ॥
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