Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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[ ३४७.
२, ६, ७०.]
खेत्ताणुगमे वेदमग्गणा वेदाणुवादेण इत्थिवेदा पुरिसवेदा सत्थाणेण समुग्घादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ ६९ ॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ७० ॥
एदेण देसामासियसुत्तेण सूइदत्थो वुच्चदे । तं जहा- सत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसाय-उब्धियसमुद्घादगदा इथिवेदजीवा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिमागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । कुदो ? पहाणीकयदेवित्थिवेदरासित्तादो। मारणंतिय-उवधादगदा तिण्ण लोगाणमसंखेजदिभागे, णर-तिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणे । एत्थ मारणंतिय-उववादखेत्तविण्णासो जाणिदण कायव्यो । एवं पुरिसवेदस्स वि वत्तव्यं । णवीर एत्थ तेजाहारपदाणि अत्थि । तेसु वटुंता चदुण्णं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे त्ति वत्तव्यं ।
वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ६९ ॥
यह सूत्र सुगम है। स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीव उक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते
___ इस देशामर्शक सूत्रसे सूचित अर्थको कहते हैं । वह इस प्रकार है- स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायससुद्घात और वैऋियिकसमुद्घातको प्राप्त स्त्रीवेदी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहां देव स्त्रीवेद राशि प्रधान है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादको प्राप्त स्त्रीवेदी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें और मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। यहां मारणान्तिक
और उपपाद क्षेत्रका विन्यास जानकर करना चाहिये । इसी प्रकार पुरुषवेदियोंका क्षेत्र भी कहना चाहिये । विशेष इतना है कि पुरुषवेदियोंमें तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घात पद भी हैं। उन पदोंमें वर्तमान पुरुषवेदी जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और मानुषक्षेत्रके संख्यातवें भागमें रहते हैं, ऐसा कहना चाहिये।
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