Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५०.] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२,१०, ३०. सुगमं । असंखेज्जा भागा ॥ ३० ॥
कुदो ? अप्पिददव्यवदिरित्तदव्वेहि सव्वीवरासिम्हि भागे हिदे तत्थुवलद्धअसंखेज्जलोगमेत्तसलागाओ विरलिय सव्वजीवरासि समखंड करिय दिण्णे तत्थेगखंड मोत्तूण बहुखंडेसु समुदिदेसु अप्पिददव्वपमाणुवलंभादो ।
सुहुमवणफदिकाइय-सुहमणिगोदजीवपज्जत्ता सबजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ३१ ॥
सुगमं । संखेज्जा भागा ॥ ३२ ॥
कुदो ? अप्पिददव्ववदिरित्तदब्वेहि सबजीवरासिमवहारिय लद्धसंखेज्जरूवाणि विरलिय सबजीवरासिं समखंड करिय दिण्णे तत्थेगरूवधरिदं मोत्तूण सेसबहुभागेसु समुदिदेसु अप्पिददवपमाणुवलंमादो । सुहुमवणप्फदिकाइए भणिदूण पुणो सुहुमणिगोदजीवे वि पुध मणदि, एदेण णव्वदि जधा सव्वे सुहुमवणप्फदिकाइया चेव
यह सूत्र सुगम है। उक्त जीव सर्व जीवोंके असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं ॥ ३०॥
क्योंकि, विवक्षित द्रव्यसे भिन्न द्रव्योंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर वहां उपलब्ध हुई असंख्यात लोकमात्र शलाकाओका विरलन कर व सर्व जीवराशिको सम- . खण्ड करके देनेपर उसमें एक खण्डको छोड़कर समुदित बहुखण्डोंमें विवक्षित द्रव्योंका प्रमाण पाया जाता है।
सूक्ष्म वनस्पतिकायिक व सूक्ष्म निगोदजीव पर्याप्त सर्व जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ३१ ॥
उपर्युक्त जीव सर्व जीवोंके संख्यात बहुभागप्रमाण हैं ॥ ३२ ॥
क्योंकि, विवाक्षित द्रव्यसे भिन्न द्रव्यों द्वारा सर्व जीवराशिको अपहृत कर लब्ध हुए संख्यात रूपोका विरलन कर व सर्व जीवराशिको समखण्ड करके देनेपर उनमें पक रूप धरित राशिको छोड़कर शेष समुदित बहुभागोंमें विवक्षित द्रव्योंका प्रमाण पाया जाता है । सूक्ष्म वनस्पतिकायिकोंको कहकर पुनः सूक्ष्म निगोद जीवोंको भी पृथक् कहते
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