Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुदाबंधो । २, ६, १०३. लोगस्स असंखेज्जदिमागे ॥ १०३ ॥
एदस्स देसामासियसुत्तस्स अत्थो वुच्चदे । तं जहा- सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसाय-वेउबियपदेहि तेउलेस्सिया तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । कुदो ? पहाणीकयदेवरासित्तादो । मारणंतियपदेण वि एवं चेव । णवीर तिरियलोगादो असंखेज्जगुणे त्ति वत्तवं । एवं चेव उववादेण वि । एत्थ ओवट्टगे ठविज्जमाणे सोधम्मरासिं ठविय अप्पणो उवक्कमणकालेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण भागे हिदे एगसमएण तत्थुप्पज्जमाणजीवपमाणं होदि । पुणो पभापत्थडे उप्पज्जमाणजीवाणं पमाणागमणहमवरेगो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो भागहारो ठवेदव्यो । एवं ठविदे दिवड्डरज्जुआयामेण उववादगदजीवपमाणं होदि । पुणो संखेज्जपदरंगुलमेत्तरज्जूहि गुगिदे उववादखेत्तं होदि । एत्थ ओवट्टणं जाणिय कायव्यं ।
सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसायपदेहि पम्मलेस्सिया तिण्हं लोगाणं
उक्त दो लेश्यावाले जीव उक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥१०३ ॥
इस देशामर्शक सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है- स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषाय समुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे तेजोलेश्यावाले जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहां देवराशिकी प्रधानता है । मारणान्तिकसमुद्घात पदकी अपेक्षा भी इसी प्रकार ही क्षेत्र है। विशेष इतना है कि तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, ऐसा कहना चाहिये। इसी प्रकार उपपाद पदकी अपेक्षा भी क्षेत्रका निरूपण जानना चाहिये। यहां अपवर्तनके स्थापित करते समय सौधर्मराशिको स्थापित कर अपने उपक्रमणकालरूप पल्योपमके असंख्यातवे भागसे भाग देनेपर एक समयमें वहां उत्पन्न होनेवाले जीवोंका प्रमाण होता है। पुनः प्रभा पटलमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके प्रमाणके परिज्ञानार्थ एक अन्य पल्योपमके असंख्यातवें भागको भामहाररूपसे स्थापित करना चाहिये। इस प्रकार उक्त भागहारके स्थापित करनेपर डेढ़ राजुप्रमाण आयामसे उपपादको प्राप्त जीवोंका प्रमाण होता है। पुनः उसे संख्यात प्रतरांगुलमात्र राजुओंसे गुणित करनेपर उपपादक्षेत्रका प्रमाण होता है। यहां अपवर्तना जानकर करना चाहिये ।
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात
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