Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३९६] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ७, ५९. लोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो फोसिदो । कुदो ? पुव्यवेरियसंबंधेण तिरियपदरं सव्वं हिंडमाणविगलिंदियाणं सव्वत्थ तीदे कसाय-वेयणाणमुवलंभादो । एसो वासदत्थो । मारणंतिय-उववादेहि सबलोगो फोसिदो, सव्वत्थ गमणागमणविरोहाभावादो । विगलिंदियअपज्जत्ताणं वेयण-कसायखेत्ताणं सत्थाणभंगो, तत्थ विहारखदिसत्थाणस्स अभावादो।
पंचिंदिय-पचिंदियपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ ५९॥
सुगम । लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोदसभागा वा देसूणा ॥६॥
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ति णिदेसो वट्टमाणावेक्खो। तेणेत्थ खेत्तपरूवणा कायव्वा । संपधि वासदत्थो ताव उच्चदे- सत्थाणेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एदम्मि खेत्ते
अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, पूर्वरैरियोंके सम्बन्धसे सर्व तिर्यकप्रतरमें घूमनेवाले विकलेन्द्रिय जीवोंके सर्वत्र अतीत कालकी अपेक्षा कषायसमुद्घात व वेदनासमुद्घात पद पाये जाते हैं। यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है, क्योंकि, सर्वत्र उक्त जीवोंके गमनागमनमें कोई विरोध नहीं है । विकलेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण स्वस्थान पदके समान है, क्योंकि विहार वत्स्वस्थानपदका उनमें अभाव है।
- पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव स्वस्थानपदोंसे कितने क्षेत्रका स्पर्श करते हैं ? ॥ ५९ ॥
यह सूत्र सुगम है।
उपर्युक्त जीव स्वस्थानपदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग, अथवा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं । ६० ॥
'लोकका असंख्यातवां भाग' यह निर्देश वर्तमान कालकी अपेक्षासे है। इसलिये यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये। अब यहां वा शब्दसे सूचित अर्थ कहते हैंस्वस्थानपदोंसे तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । इस क्षेत्रके निकालनेमें राजुप्रतरको स्थापित
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