Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, ७, २४९. अड्डाइज्ज़ादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो वासद्दसमुच्चिदत्थो । विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोद्दसभागा फोसिदा, उवसमसम्माइट्ठीणं देवाणमट्ठचोदसभागतरे विहारं पडि विरोहाभावादो।
समुग्घादेहि उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥२४९ ॥ सुगमं ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २५० ॥
एत्थ अदीद-वट्टमाणकालेसु मारणतिय-उववादपरिणएहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो, माणुसखेत्तम्मि चेव मरंताणं उवसमसम्माइट्ठीणमुवलंभादो । वेयण-कसाय-वेउब्धियसमुग्घादाणमुवसमसम्माइट्ठीणं देवाणमट्ठचोदसभागा किण्ण परूविदा ? ण, एवं परूविज्जमाणे सासणस्स मारणंतियसमुग्घादस्स वि अट्टचोदसभागा होति ति संदेहो मा होहदि त्ति तण्णिराकरणहूँ ण परूविदा ।
संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। यह वा शब्दसे संगृहीत अर्थ है । विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टि देवोंके आठ बटे चौदह भागोंके भीतर विहारमें कोई विरोध नहीं है।
उक्त उपशमसम्यग्दृष्टियों द्वारा समुद्घात व उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ।। २४९ ॥
यह सूत्र सुगम है।
उपशमसम्यग्दृष्टियों द्वारा उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २५० ॥
यहां अतीत व वर्तमान कालोंमें मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे परिणत उपशमसम्यग्दृष्टियों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, मानुषक्षेत्र में ही मरणको प्राप्त होनेवाले उपशमसम्यग्दृष्टि पाये जाते हैं।
शंका-वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातकी अपेक्षा उपशमसम्यग्दृष्टि देवोंके आठ बटे चौदह भाग यहां क्यों नहीं कहे ?
समाधान नहीं, क्योंकि, ऐसा निरूपण करनेपर ‘सासादनसम्यग्दृष्टिके मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा भी आठ बटे चौदह भाग होते हैं' ऐसा संदेह न हो, इस प्रकार उसके निराकरणके लिये उक्त आठ बटे चौदह भागोंका निरूपण नहीं किया।
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