Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१९६] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १०, ३. तं कधं ? णेरइएहि घणंगुलबिदियवग्गमूलमेत्तसेडिपमाणेहि सव्यजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलणि आगच्छंति । लद्धं विरलिय सव्यजीवरासिं समखंडं काऊण रूवं पडि दिण्णे तत्थ एगरूवधरिदं णेरइयपमाणं होदि । तेण णेरइया सव्वजीवाणमणतभागो त्ति वुत्तं होदि ।
एवं सत्तसु पुढवीसु रइया ॥३॥
सत्तण्हं पुढवीणं णेरइएहि पुध पुध सयजीवरासिम्हि भागं घेत्तूण लद्धं विरलिय पुणो सधजीवरासिं सत्तण्णं विरलणाणं समखंडं करिय दिण्णे तत्थ एगरूवधरिदं जहाकगेण पढमादीणं सत्तण्णं पुढवीण दव्वं जेण होदि तेण णेरइयभंगो सत्तण्णं पुढवीण जुञ्जदे।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥४॥
एदस्स अत्थो-- तिरिक्खा सव्वजीवाणं किमणंतिमभागो किमणता भागा किमसंखज्जदिभागो किमसंखेज्जा भागा किं संखेज्जा भागा होति त्ति पुच्छा कदा । तत्थ छसु वियप्पेसु एक्कस्सेव गहणमुत्तरसुत्तं भणदि
वह कैसे ? घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे गुणित जगश्रेणीप्रमाण नारकियोंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त सर्व-जीवराशि-प्रथमवर्गमूल आते हैं। लब्धराशिका विरलन करके सर्व जीवराशिको समखण्ड कर रूपके प्रति देनेपर उसमें एक रूप धरित राशिनारकियोंका प्रमाण होती है। इस कारण 'नारकी जीव सर्व जीवराशिके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ' ऐसा कहा है।
इसी प्रकार सात पृथिवियोंमें नारकियोंके भागाभागका क्रम है ।। ३ ।।
सात पृथिवियोंके नारकियोंका पृथक् पृथक् सर्व जीवराशिमें भाग देकर जो लब्ध हो उसका विरलन कर पुनः सर्व जीवराशिको सात विरलनराशियोंके समखण्ड करके देनेपर उसमें एक रूप धरित राशि चूंकि क्रमशः प्रथमादिक सात पृथिवियोंका द्रव्य होता है, इसलिये सात पृथिवियोंके भागाभागको नारकियोंके समान कहना युक्त है।
तियंचगतिमें तिर्यंच जीव सर्व जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ४ ।।
इसका अर्थ-तिर्यंच जीव सर्व जीवोंके क्या अनन्तवें भाग हैं, क्या अनन्त बहुभाग हैं, क्या असंख्यातवें भाग हैं, क्या असंख्यात बहुभाग हैं, और क्या संख्यात बहुभाग हैं, इस प्रकार यहां पृच्छा की गई है। उन छह विकल्पों से एक ही ग्रहणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
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