Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२, १०, ११.] भागाभागाणुगमे इंदियमागणा
संखेज्जा भागा॥ १८ ॥
कुदो ? सुहुमेइंदियपज्जत्तवदिरित्तजीवेहि सबजीवरासिमोवडिय तत्वलद्धसंखेज्जरूवाणि विरलिय सव्वजीवरासिं रूवं पडि समखंडं करिय दिण्णे तत्थ एगरूनधरिदं मोत्तूण सेसबहुभागे सुहुमेइंदियपज्जत्तपमाणुवलंभादो।
सुहुमेइंदियअपज्जत्ता सव्वजीवाणं केवडिओ भागो? ॥ १९॥ सुगमं । संखेज्जदिभागो ॥२०॥
कुदो ? सुहुमेइंदियअपज्जत्तएहि सव्वजीवरासिम्मि भागे हिदे लद्धसंखेज्जरूवाणि विरलिय सव्वजीवरासिं समखंडं करिय दिण्णे तत्थ एगरूवस्सुवरि सुहुमेहंदियअपज्जत्तपमाणत्तदंसणादो।
बीइंदिय-तीइंदिय-चउरािंदिय-पंचिंदिया तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ २१ ॥
सुगमं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव सर्व जीवोंके संख्यात बहुभागप्रमाण हैं ॥१८॥
क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंको छोड़ अन्य जीवोंसे सर्व जीवराशिका अपवर्तन करके उसमें प्राप्त संख्यात रूपोंका विरलन कर व सर्व जीवराशिको समखण्ड करके रूपके प्रति देनेपर उसमें एक रूप धरित राशिको छोड़ शेष बहुभागमें सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका प्रमाण पाया जाता है।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव सब जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥१९॥ यह सूत्र सुगम है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव सर्व जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥२०॥
क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर प्राप्त हुए संख्यात रूपोंका विरलन कर सर्व जीवराशिको समखण्ड करके देनेपर उसमें एक रूपके ऊपर सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका प्रमाण देखा जाता है।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और उनके ही पर्याप्त व अपर्याप्त जीव सर्व जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं १ ॥२१॥
यह सूत्र सुगम है। १ मप्रतौ ' असंखेम्जा' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org