Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१९४) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ९, ६६. आहाराणुवादेण आहार-अणाहाराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥६६॥
सुगमं । णत्थि अंतरं ॥ ६७॥ सुगमं । णिरंतरं ॥ ६८॥ सुगमं ।
एवं णाणाजीवेण अंतराणुगमो त्ति समत्तमणिओगद्दारं ।
आहारमार्गणाके अनुसार आहारक व अनाहारक जीवोंका अन्तर कितने कालतक होता है ? ॥ ६६ ।।
यह सूत्र सुगम है। आहारक और अनाहारक जीवोंका अन्तर नहीं होता है ॥ ६७ ॥ यह सूत्र सुगम है। वे निरन्तर हैं ॥ ६८॥ यह सूत्र सुगम है। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
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