Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ९, ६५. ]
णाणाजीवेण अंतराणुगमे सण्णिमगणा
जहणेण एगसमयं ॥ ६१ ॥
कुदो ? सासणसम्मत सम्मामिच्छत्तगुणाणं जहणेण एगसमयं अंतरं पडि विरोहाभावादो ।
उक्करण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ६२ ॥
सुगमं ।
सणियाणुवादेण सण असण्णीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ।। ६३ ।।
सुगमं ।
णत्थि अंतरं ॥ ६४ ॥
सुगमं । निरंतरं ॥ ६५ ॥
सुमं ।
सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर जघन्यसे एक समय है ॥ ६१ ॥
( ४९३
क्योंकि, सासादनसम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानोंके जघन्यसे एक समय अन्तर के प्रति कोई विरोध नहीं है ।
उक्त जीवोंका अन्तर उत्कर्ष से पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥ ६२ ॥ है ।
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यह सूत्र सुगम
संज्ञिमार्गणा के अनुसार संज्ञी व असंज्ञी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ६३ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
संज्ञी व असंज्ञी जीवोंका अन्तर नहीं होता है ॥ ६४ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
संज्ञी व असंज्ञी जीव निरन्तर हैं ।। ६५ ।।
मह सूत्र सुगम है ।
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