Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १०, ७. ]
भागाभागाणुगमे गदिमागणा अणंता भागा ॥५॥
तं जहा-सिद्ध-तिगदिजीवेहि सव्यजीवरासिमोवट्टिय लद्धं विरलिय सव्वजीवरासि समखंडं करिय रूवं पडि दिण्णे एगरूवधरिदं सिद्ध-तिगदिजीवपमाणं होदि । तत्थ एगरूवधरिदं मोत्तण सेसबहुभागा जेण तिरिक्खाणं पमाणं होदि तेण तिरिक्खा सन्चजीवाणमणताभागो त्ति मुत्ते उत्तं । . . .
पंचिंदियतिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी पचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता, मणुसगदीएमणुसा मणुसपज्जत्ता मणुसिणी मणुसअपज्जत्ता सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥६॥
सुगममेदं, पुव्वं परूविदत्तादो। अणंतभागो ॥ ७॥
पुव्वुत्तछवियप्पेसु एदे जीवा अणंतभागवियप्पे चेव अस्थि, अण्णत्थ णस्थि त्ति एदेण मुत्तेण परूविदं । एत्थ पुव्वुत्तअट्ठवियप्पजीवपमाणेण दवाणिओगद्दारादो
तिर्यंच जीव सब जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं ॥५॥
वह इस प्रकार है- सिद्ध और तीन गतियोंके जीवोंसे सर्व जीवराशिको अपवर्तित कर जो लब्ध हो उसका विरलन कर सर्व जीवराशिको समखण्ड करके रूपके प्रति देनेपर एक रूप धरित सिद्ध और तीन गतियोंके जीवोंका प्रमाण होता है । उसमें एक रूप धरित राशिको छोड़कर शेष बहुभाग चूंकि तिर्यचोंका प्रमाण होता है, अतएव 'तिर्यच सर्व जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं ' ऐसा सूत्र में कहा है।
पंचेन्द्रिय तिर्यच, पंचेन्द्रिय तियंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव; तथा मनुष्यगतिमें मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और मनुष्य अपर्याप्त जीव सर्व जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ६॥
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, पूर्व में प्ररूपण किया जा चुका है। उपर्युक्त जीव सर्व जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ॥ ७॥
पूर्वोक्त छह विकल्पों से ये 'अनन्तभाग' विकल्पमें ही हैं, अन्यत्र नहीं हैं, ऐसा इस सूत्र द्वारा प्ररूपित है। यहां द्रव्यानुयोगद्वारसे जाने गये पूर्वोक्त आठ प्रकार
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