Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे स्वुद्दाबंधो { २, ७, २७१. सव्वलोगो वा ॥ २७१ ॥
मारणंतियसमुग्घादं पडुच्च एसो णिद्देसो । तसकाइएसु सण्णीसु मुक्कमारणंतियसण्णी जीवे पडुच्च बारहचोद्दसभागा देसूणा फोसिदा । एसो वासदत्थो ।
उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २७२ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २७३ ॥ सुगमं, वहमाणप्पणादो। सव्वलोगो वा ॥ २७४ ॥
सण्णीसुप्पण्णअसण्णीणं सबलोगोवलंभादो । मण्णीणं मणीसुप्पज्जमाणाणं बारहचोद्दसभागा होति । सम्माइट्ठीणं छचोदसभागा। एसो वासदत्थो । एवमण्णत्थ वि अउत्तट्ठाणे वासदाणमत्थो वत्तव्यो ।
अथवा, सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ २७१ ।।
यह कथन (असंशी जीवोंमें किये गये) मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षासे है। त्रसकायिक संझी जीवोंमें मारणान्तिक समुद्घातको करनेवाले संझी जीवोंकी अपेक्षा कुछ कम बारह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है ।
उपपादकी अपेक्षा संज्ञी जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ २७२ ॥ यह सूत्र सुगम है।
उपपादकी अपेक्षा संज्ञी जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २७३ ।।
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है । अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ २७४ ॥
क्योंकि, संशियोंमें उत्पन्न हुए असंही जीवोंके सर्व लोक क्षेत्र पाया जाता है। किन्तु संशियोंमें उत्पन्न होनेवाले संक्षी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र बारह बटे चौदह भाग है। सम्यग्दृष्टि संशियोंका उपपादक्षेत्र छह बटे चौदह भागप्रमाण है। यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। इसी प्रकार अन्यत्र भी अनुक्त स्थानमें वा शब्दोंका अर्थ कहना चाहिये।
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