Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१८६)
.. छक्खंडागमै खुदाबंधी
[२, ९, २८.
सुगमं ।
जहण्णेण एगसमयं ॥ २८ ॥ कुदो ? आहार-आहारमिस्सजोगेहि विणा तिहुवणजीवाणमेगसमयमुवलंभादो । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २९ ॥ कुदो ? दोहि वि जोगेहि विणा सधपमत्तसंजदाणं वासपुधत्तावट्ठाणदसणादो ।
वेदाणुवादेण इत्थिवेदा पुरिसवेदा गqसयवेदा अवगदवेदाणमंतरं केवचिरं कालादो होंदि ? ॥ ३०॥
सुगम । पत्थि अंतरं ॥ ३१ ॥ सुगम । णिरंतरं ॥ ३२॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवोंका अन्तर जघन्यसे एक समय होता है ॥ २८ ॥
क्योंकि, आहारक और आहारकमिश्र काययोगियों के विना तीनों लोकोंके जीव एक समय पाये जाते हैं।
उपर्युक्त जीवोंका अन्तर उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्वप्रमाण होता है ॥ २९ ॥
क्योंकि, उक्त दोनों ही योगोंके बिना समस्त प्रमत्तसंयतोंका वर्षपृथक्त्व काल तक अवस्थान देखा जाता है।
वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी और अपगतवेदी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ३० ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवोंका अन्तर नहीं होता है ॥ ३१ ॥ यह सूत्र सुगम है। वे जीवराशियां निरन्तर हैं ॥ ३२ ॥
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