Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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खंडागमे खुद्दाबधो
[२, ९, २०. सुगम । णिरंतरं ॥२०॥
सुगमं । दुणयाणुग्गहलु परूविद-दोसुत्ताणि जाणाति सुत्तकत्तारस्स बीयरायत्तं जीवदयावरत्तं च ।
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगि-कायजोगि-ओरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-वेउब्बियकायजोगि-कम्मइयकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ २१ ॥
सुगमं । णत्थि अंतरं ॥ २२॥ सुगमं । णिरंतरं ॥ २३ ॥ सुगम।
यह सूत्र सुगम है।
ये सब जीवराशियां निरन्तर हैं ॥२०॥ ___ यह सूत्र सुगम है। दोनों नयोंका अवलम्बन करनेवाले शिष्योंके अनुग्रहार्थ कहे गये उपर्युक्त दो सूत्रसूत्रकर्ताकी वीतरागता और जीवदयापरताको सूचित करते हैं।
योगमार्गणाके अनुसार पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी और कार्मणकाययोगी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ २१ ॥
यह सूत्र सुगम है। . उपर्युक्त जीवोंका अन्तर नहीं होता है ॥ २२ ॥ यह सूत्र सुगम है। वे जीवराशियां निरन्तर हैं ॥ २३ ॥ . यह सूत्र सुगम है।
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