Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ९, ४७.] णाणाजीवेण अंतराणुगमे दंसणमग्गणा
सुगमं । जहण्णेण एगसमयं ॥४३॥ कुदो ? सुहुमसांपराइयसंजदेहि विणा एगसमयदंसणादो । उक्कस्सेण छम्मासाणि ॥४४॥ कुदो ? खवगसेडीसमारोहणस्स छम्मासाणमुवरिमुक्कस्संतरस्स अणुवलंभादो ।
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणि-अचक्खुदंसणि-ओहिदंसणि-केवलदंसणीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥४५॥
सुगमं । णत्थि अंतरं ॥ ४६॥ सुगमं । णिरंतरं ॥४७॥ सुगर्म ।
यह सूत्र सुगम है। सूक्ष्मसाम्परायिक जीवोंका अन्तर जघन्यसे एक समय होता है ॥ ४३ ॥ क्योंकि, सूक्ष्मसाम्परायिक संयतोंके विना एक समय देखा जाता है। उक्त जीवोंका अन्तर उत्कर्षसे छह मास होता है ।। ४४॥
क्योंकि, क्षपकश्रेणी आरोहणका छह मासोंके ऊपर उत्कृष्ट अन्तर नहीं पाया जाता।
दर्शनमार्गणानुसार चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ४५ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवोंका अन्तर नहीं होता है ।। ४६ ॥ यह सूत्र सुगम है। ये जीवराशियां निरन्तर हैं ॥ ४७ ॥ यह सूत्र सुगम है।
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