Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ९, ११. णाणा जीवेण अंतराणुगमे गदिमागणा
[१८१ मणुसअपज्जत्ताणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ८॥ सुगमं । जहण्णेण एगसमओं ॥ ९॥
सेडीए असंखेञ्जदिमागमतेसु मणुसअपजत्तएमु कालं काऊण अण्णगई गएसु एगसमयमंतरं होऊण बिदियसमए अण्णेसु तत्थुप्पण्णेसु लद्धमेगसमयमंतरं ।
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १० ॥
कुदो १ मणुसअपजत्तएसु कालं काऊण अण्णगई गएसु पलिदोवमस्स असं. खेआदिभागमेत्तकाले अइक्कते पुणो णियमेण मणुसअपज्जत्तएसु उप्पज्जमाणजीवाणमुवलंभादो।
देवगदीए देवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ११ ॥ सुगमं ।
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मनुष्य अपर्याप्तोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥८॥ यह सूत्र सुगम है। मनुष्य अपर्याप्तोंका अन्तर जघन्य से एक समय है ।। ९ ॥
जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र मनुष्य अपर्याप्तोंके मरकर अभ्य गतिको प्राप्त होनेपर एक समय अन्तर होकर द्वितीय समयमें अन्य जीवोंके मनुष्य अपर्याप्तोंमें उत्पन्न होनेपर एक समय अन्तर प्राप्त होता है।
___ मनुष्य अपर्याप्तोंका अन्तर उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र काल होता है ॥ १०॥
__ क्योंकि, मनुष्य अपर्याप्तोंके मरकर अन्य गतिको प्राप्त होनेके पश्चात् पल्यो.
असख्यात भागमात्र कालके बीत जानेपर पुनः नियमसे मनुष्य अपर्याप्तीमें उत्पन्न होनेवाले जीव पाये जाते हैं।
देवगतिमें देवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ११ ॥ यह सूत्र सुगम है।
पमके असंख्यातवें भाग
१ उवसम-महुमाहारे वेगुम्वियमिस्स-णरअपज्जते । सासणसम्मे मिस्से सांतरगा मग्गणा अg ॥ सत्त दिणा मुम्भासा वासपुधत्तं च बारसमुहुता। पल्लासंखं तिण्हं वरमवरं एगसमयो दु॥ गो. जी. १४२-१४३.
२ प्रतिनु 'सेडीपुष्वसंखेजदिमागमेतेसु ' इति पाठः ।
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