Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४८० ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ९, ५. कुदो ? अंतराभावं पडि विसेसाभावादो' ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता, मणुसगदीए मणुसा मणुसपज्जत्ता मणुसिणीणमंतरं केवचिरं कालादो होति ? ॥ ५॥
___ दोणं गईणमेगवारेण णिदेसो किमढ़ का ? देव-गरइयाणं व एदेसि पुधखेत्तावासो पत्थि त्ति जाणायणटुं । सेसं सुगमं ।
णत्थि अंतरं ॥ ६ ॥ एसो पसज्जपडिसेहो, विहीए पहाणत्ताभावादो । णिरंतरं ॥७॥ एसो पज्जुवासपडि सेहो, पडिनेहस्स पहाणत्ताभावादो ।
क्योंकि, अन्तराभावके प्रति सातों पृथिवियोंके नारकियों में कोई विशेषता नहीं है।
तिर्यंचगतिमें तिथंच, पंचेन्द्रिय तियंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त, पंचन्द्रिय तिर्यच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त तथा मनुष्यगतिमें मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त व मनुष्यनियोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ।। ५॥
शंका-दोनों गतियोंका निर्देश एक वार किसलिये किया ?
समाधान–देव और नारकियों के समान इनका पृथक् क्षेत्रमें निवास नहीं है, इस बातके ज्ञापनार्थ दोनों गतियों का एक वार निर्देश किया है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
उपर्युक्त जीवोंका अन्तर नहीं होता ॥ ६ ॥ यह प्रसज्यप्रतिषेध है, क्योंकि, यहां विधिकी प्रधानताका अभाव है। वे जीव निरन्तर हैं ॥ ७॥ यह पर्युदास प्रतिषेध है, क्योंकि, यहां प्रतिषेधकी प्रधानता नहीं है।
१ प्रतिषु 'पडि सेसाभावादो' इति पाठः ।
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