Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, २७०. ]
फोसणा गमे सणिमग्गणी
सुगम, वट्टमाणविवक्खादो |
अचोदसभागा वा देसूणा फोसिदा ॥ २६७ ॥
सत्थाणेण तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेञ्जगुणो फोसिदो । एसो वासदत्थो । विहारवादसत्थाणेण अट्ठचोहसभागा फोसिदा ।
समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २६८ ॥
सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ २६९ ॥
सुगमं, वहमाणप्पणादो ।
अट्टाहस भागा वा देसूणा ॥ २७० ॥
वेयण-कसाय-वेउच्चियसमुग्धादेहि अट्ठचोहसभागा फोसिदा, देवाणं विहरंताणं तिह मेदेसि मुलं भादो |
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यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है ।
अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ २६७ ॥
स्वस्थान पद से संज्ञी जीवोंने तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । विहारवत्स्वस्थानसे आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है । समुद्घातोंकी अपेक्षा संज्ञी जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ।। २६८ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
।। २७० ।।
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संज्ञी जीवों द्वारा समुद्घात पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है || २६९॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है ।
अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं
वेदना, कपाय और वैक्रियिक समुद्घातोंकी अपेक्षा आठ बटे चौदह भाग पृष्ट हैं, क्योंकि, विहार करते हुए देवोंके ये तीनों समुद्घात पाये जाते हैं ।
१ अप्रतौ ' लोगस्स संखेज्जदिभागो', काप्रतौ ' लोगसंखेज्जदिभागो ' इति पाठः ।
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