Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४७२ ]
सव्वदा ॥ २८ ॥
एदं पि सुगमं ।
सव्वद्धा ॥ ३० ॥
एदं पि सुगमं ।
छक्खंडागमे खुदाबंधो
कसायाणुवादेण को कसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई अकसाई केवचिरं कालादो होंति ? ॥ २९ ॥
सुगमं ।
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी विभंगणाणी आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणी मणपज्जवणाणी केवलणाणी केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ३१ ॥
मं
सव्वद्धा ।। ३२ ॥
उपर्युक्त जीव सर्व काल रहते हैं ।। २८ ।।
यह सूत्र भी सुगम है ।
कषायमार्गणा के अनुसार क्रोधकपायी, मानकपायी, मायाकपायी, लोभकषायी और अकषायी जीव कितने काल तक रहते हैं ? ।। २९ ।।
यह सूत्र सुगम है ।
उपर्युक्त जीव सर्व काल रहते हैं ।। ३० ।।
[ २, ८, २८.
यह सूत्र भी सुगम है ।
ज्ञानमार्गणा अनुसार मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, त्रिभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी जीव कितने काल तक रहते हैं ? ।। ३१ ।।
यह सूत्र सुगम है ।
उपर्युक्त जीव सर्व काल रहते हैं ॥ ३२ ॥
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