SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५४ छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, ७, २४९. अड्डाइज्ज़ादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो वासद्दसमुच्चिदत्थो । विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोद्दसभागा फोसिदा, उवसमसम्माइट्ठीणं देवाणमट्ठचोदसभागतरे विहारं पडि विरोहाभावादो। समुग्घादेहि उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥२४९ ॥ सुगमं ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २५० ॥ एत्थ अदीद-वट्टमाणकालेसु मारणतिय-उववादपरिणएहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो, माणुसखेत्तम्मि चेव मरंताणं उवसमसम्माइट्ठीणमुवलंभादो । वेयण-कसाय-वेउब्धियसमुग्घादाणमुवसमसम्माइट्ठीणं देवाणमट्ठचोदसभागा किण्ण परूविदा ? ण, एवं परूविज्जमाणे सासणस्स मारणंतियसमुग्घादस्स वि अट्टचोदसभागा होति ति संदेहो मा होहदि त्ति तण्णिराकरणहूँ ण परूविदा । संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। यह वा शब्दसे संगृहीत अर्थ है । विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टि देवोंके आठ बटे चौदह भागोंके भीतर विहारमें कोई विरोध नहीं है। उक्त उपशमसम्यग्दृष्टियों द्वारा समुद्घात व उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ।। २४९ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपशमसम्यग्दृष्टियों द्वारा उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २५० ॥ यहां अतीत व वर्तमान कालोंमें मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे परिणत उपशमसम्यग्दृष्टियों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, मानुषक्षेत्र में ही मरणको प्राप्त होनेवाले उपशमसम्यग्दृष्टि पाये जाते हैं। शंका-वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातकी अपेक्षा उपशमसम्यग्दृष्टि देवोंके आठ बटे चौदह भाग यहां क्यों नहीं कहे ? समाधान नहीं, क्योंकि, ऐसा निरूपण करनेपर ‘सासादनसम्यग्दृष्टिके मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा भी आठ बटे चौदह भाग होते हैं' ऐसा संदेह न हो, इस प्रकार उसके निराकरणके लिये उक्त आठ बटे चौदह भागोंका निरूपण नहीं किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy