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________________ २, ७, २४८.] फोसणाणुगमे सम्मत्तमागणा [४५३ छचोदसभागा वा देसूणा ॥ २४५॥ देव-णेरइएहितो आगंतूग वेदगसम्मादिट्ठिमणुस्सेसुप्पण्णेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । णवरि देवेहि तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो । एसो वासद्दसमुच्चिदत्थो । तिरिक्ख-मणुस्सेहितो देवेसुप्पज्जमाणवेदगसम्माइट्ठीहि छचोदसभागा फोसिदा । उवसमसम्माइट्टी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥२४६॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २४७ ॥ सुगम, वट्टमाणप्पणादो। अट्ठचोदसभागा वा देसूणा ॥ २४८ ॥ सत्थाणेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २४५ ॥ देव-नारकियों मेंसे आकर मनुष्योंमें उत्पन्न हुए वेदकसम्यग्दृष्टियों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। विशेष इतना है कि देवों द्वारा तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे संगृहीत अर्थ है । तिर्यंच और मनुष्योंमेंसे देवों में उत्पन्न होनेवाले वेदकसम्यग्दृष्टियों द्वारा छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट है। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ।। २४६॥ यह सूत्र सुगम है। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २४७॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है। अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ? ॥२४८ ॥ स्वस्थान पदसे उक्त जीवों द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग,तिर्यग्लोकका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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