Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, १६४.1 फोसणाणुगमे मदिणाणिआदीणं फासणं
एदं देसामासियसुत्तं, तेणेदेण सूइदत्थो ताव उच्चदे । तं जहा- सत्थाणेहि तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। तेजाहारपदाणं खेत्तं । एसो सूइदत्थो । विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसायबेउब्धिय-मारणंतिएहि अट्टचोद्दसभागा देसूणा फोसिदा ।
उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १६२ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १६३ ॥ एदस्स अत्थपरूवणाए खेत्तभंगो । कुदो १ वट्टमाणप्पणादो । छचोदसभागा देसूणा ॥ १६४ ॥
एदस्स अत्थो वुच्चदे- तिरिक्खअसंजदसम्माइट्ठि-संजदासजदाणमारणादिदेवेसुप्पज्जमाणाणं छचोदसभागा। हेट्ठा दोरज्जुमेत्तद्धाणं गंतूग द्विदावत्थाए छिण्णाउआणं
यह देशामर्शक सूत्र है, अत एव इससे सूचित अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है-उपर्युक्त तीन ज्ञानवाले जीवोंने स्वस्थानपदोंसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है। तैजससमुदधात और आहारकसमुद्घातकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपग क्षेत्रके समान है । यह सूचित अर्थ है। विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है।
उक्त जीवोंने उपपाद पदसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १६२ ।। यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंने उपपाद पदसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है
इस सूत्रके अर्थका निरूपण क्षेत्रप्ररूपणाके समान है, क्योंकि, वर्तमानकालकी विवक्षा है।
अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ।। १६४ ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- आरणादिक देवोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यच भसंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवोंका उत्पादक्षेत्र छह बटे चौदह भागप्रमाण है।
शंका-नीचे दो राजुमात्र मार्ग जाकर स्थित अवस्थामें आयुके क्षीण होनेपर
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