Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, २३४.] फोसणाणुगमे सम्मत्तमरगणा
खइयसम्माइट्टी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २३०॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २३१ ॥ सुगम, वट्टमाणप्पणादो। अट्रचोदसभागा वा देसूणा ॥ २३२ ॥
सत्थाणत्थेहि तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो वासदत्थो। विहारवदिसत्थाणेण अट्टचोद्दसभागा देसूणा फोसिदा ।
समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २३३ ॥
सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २३४ ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ २३०॥
यह सूत्र सुगम है।
क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ २३१ ॥
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है।
अथवा, उक्त जीवों द्वारा अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २३२ ॥
__ स्वस्थानमें स्थित क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । विहारवत्स्वस्थानसे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है। ....
समुद्घात पदोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ २३३ ॥ यह सूत्र सुगम है।
समुद्घात पदोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २३४॥
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