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________________ [ ४१९ २, ७, २३४.] फोसणाणुगमे सम्मत्तमरगणा खइयसम्माइट्टी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २३०॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २३१ ॥ सुगम, वट्टमाणप्पणादो। अट्रचोदसभागा वा देसूणा ॥ २३२ ॥ सत्थाणत्थेहि तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो वासदत्थो। विहारवदिसत्थाणेण अट्टचोद्दसभागा देसूणा फोसिदा । समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २३३ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २३४ ॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ २३०॥ यह सूत्र सुगम है। क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ २३१ ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है। अथवा, उक्त जीवों द्वारा अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २३२ ॥ __ स्वस्थानमें स्थित क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । विहारवत्स्वस्थानसे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है। .... समुद्घात पदोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ २३३ ॥ यह सूत्र सुगम है। समुद्घात पदोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २३४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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